
● अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को लेकर बोले योगाचार्य सुरेन्द्र आर्य विद्यार्थी।
प्रवाह ब्यूरो
लखनऊ। योग जीवन दर्शन का प्रबंधन है। योग आत्मानुशासन है। योग मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन शैली है।
21 जून, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को लेकर आज जहां भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व योग को अपना रहा है। इसी क्रम में बीते 15 जून से 21 जून तक योग सप्ताह का आयोजन भी किया जा रहा है।
योग को लेकर यूपी के संभल जनपद से योगाचार्य सुरेन्द्र आर्य विद्यार्थी ने कहा कि योग मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन शैली है। योग चित्त को निर्मल और निर्बीज करने की परम आध्यात्मिक विद्या है। उन्होंने बताया कि योग संपूर्ण चिकित्सा का विज्ञान है, योग जीवन का भी विज्ञान है। योग व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की संपूर्ण समस्याओं का अमोघ और पूर्ण समाधान है। सुरेंद्र आर्य ने कहा कि योग संपूर्ण जीवन दर्शन है। योग द्वारा आंतरिक और बाह्य रूपों में समग्र आरोग्यता प्राप्त होती है। योग से संपूर्ण सौंदर्य की प्राप्ति होती है। योग से हमारा समग्र व्यक्तित्व निखरता है। आरोग्य, निर्भयता, स्वतंत्रता, सहनशीलता, सहिष्णुता, सुख, शांति, सुरक्षा, प्रेम, करुणा, वात्सल्य, धैर्य, प्रज्ञा, विवेक, सौंदर्य, आनंद, ओज, तेज, सफलता, अमृत योग के ही परिणाम हैं।

उन्होंने कहा कि अपने आपके कुसंस्कारों, दोष दुर्गुणों का परिशोधन, परिमार्जन और उसके स्थान पर सज्जनता, सदाशयता का संस्थापन करना है। आमतौर पर अपने दोष, दुर्गुण दिखाई नहीं पड़ते। यह कार्य विवेक रूपी बुद्धि को अंतर्मुखी होकर करना पड़ता है। आत्म निरीक्षण,आत्मसाधना, आत्म सुधार, आत्मनिर्माण, आत्म विकास, आत्मविश्वास एवं आत्म सम्मान इन सात तत्वों पर कठोर समीक्षण – परीक्षण की दृष्टि से अपने आप को हर कसौटी पर परखना चाहिए।
जो दोष दिखाई दे उनके निराकरण के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।
चित्त की वृत्तियों का रुक जाना ही योग है। असत्य, कल्पना और स्वप्नों में रहना मन को सार्थक लगता है। मन भूत की व्यथा में, पीड़ा में, अतीत की स्मृतियों में अथवा भविष्य की चिंता में खोया रहता है।
योग का अर्थ है वर्तमान में जीना, जहां न तो दुख होता है न ही चिंता। वर्तमान में होता है- सृजन। भविष्य का भय न करने वाला व्यक्ति ही वर्तमान का आनंद ले सकता है। वर्तमान ही भूत का निर्माण और भविष्य की आधारशिला तैयार करता है। भूत तथा भविष्य दोनों ही सत्ता विहीन होते हैं। सत्ता तो केवल वर्तमान की होती है, वर्तमान में जीने से ही जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है। मन के पार जाने से ही चेतन आत्म का अस्तित्व स्वरूप स्व अनुभव में आता है। अतः योग का अर्थ है- अपनी चेतना, केंद्र या अस्तित्व के साथ जुड़ना, स्वयं की पहचान करना, अन्तस्थ अंतर्यामी परमात्मा को प्रत्यक्ष जानना। पिंड को ब्रह्मांड में और ब्रह्मांड को पिंड में देखना। वास्तविक योग मन से पार जाने के बाद ही आरंभ होता है। मन से परे चेतना का वास्तविक अस्तित्व प्रारंभ होता है। मन में आग्रह, भूत की अस्तित्व विहीन व्यथाएं और भविष्य की अनगिनत कल्पनाएं होती हैं। हम ज्ञात में जीना चाहते हैं, जबकि अज्ञात से भयभीत रहते हैं। इसलिए हम कोई नया काम करने का साहस नहीं जुटा पाते। हमें योग द्वारा स्वास्थ,समृद्ध और संस्कारवान व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के निर्माण का लक्ष्य बनाना चाहिए।
हमें रोगी को निरोगी, भोगी को योगी तथा स्वस्थ को उपयोगी बनाकर मानव मात्र की स्वच्छता उत्पादकता, सकारात्मक तथा सृजनात्मक और गुणवत्ता बढ़ाकर एक प्रगतिशील सभ्य और समृद्ध समाज तथा राष्ट्र, विश्व का निर्माण करने की दिशा की ओर अग्रसरित होना चाहिए।
जब हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मात्सर्य के ऊपर हावी हो जाते हैं तब हमें खुशी मिलती है और जब इनमें से कोई भी एक या अधिक हमारे ऊपर हावी हो जाते हैं तो हम दुखी हो जाते हैं। इसलिए योग उनके ऊपर ज्ञानपूर्वक नियंत्रण प्राप्त कर कर शक्ति का रूपांतरण करना सिखाता है। उपरोक्त स्वैच्छिक विचार व्यक्त करते हुए योगाचार्य सुरेंद्र आर्य विद्यार्थी ने कहा कि हमें योग की शरण में आना चाहिए जिससे सारी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर जीवन जीने का मार्ग मिले।