
● एक पिंडी रूप में हुआ था मां कैला देवी का आगमन, नवरात्रों में दर्शन के लिए आता था शेर।
● दक्षिण दिशा में बहती थी लगभग 600 मीटर चौड़ी गंगा नदी।
● योग माया की अवतार मानी जाती हैं मां कैला देवी।
● आखिर कैसे पड़ा मां कैला देवी का नाम, कैसे हुईं प्रकट, क्या है मान्यता, जानें दैनिक प्रवाह के साथ।
प्रवाह ब्यूरो
संभल। उत्तर प्रदेश के संभल जनपद में स्थित मां कैला देवी धाम का बहुत ही प्राचीन इतिहास है।
जहां जनपद ही नहीं बल्कि आसपास के जनपदों और उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोग पूजा अर्चना करने आते रहते हैं। जहां पिंडी के रूप में प्रकट हुई थीं मां कैला देवी, एक महान संत ने कराई थी मठ की स्थापना। मां कैला देवी झाड़ी मंदिर भूड़ इलाके का एक प्रसिद्ध दैवीय तीर्थ स्थल है। जहां सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन मां कैला देवी के दर्शन को आते हैं तथा नवरात्रों के दिनों में हजारों की संख्या में दिनभर श्रद्धालु चलते रहते हैं।
बताया जाता है कि 14वीं शताब्दी के प्रारंभ में मां कैला देवी धाम के निकट ही दक्षिण दिशा में लगभग 600 मीटर चौड़ी नदी में गंगा की धारा बहती थी। इसी नदी में एक संत नित्य प्रतिदिन स्नान करने आते थे। एक दिन स्नान करते समय संत को नदी के किनारे स्थित उत्तर दिशा में ऊंचे टीले से एक शिशु के चीखने की आवाज सुनाई दी थी। संत ने कुछ क्षणों तक शिशु के चीखने की आवाज सुनी और अर्द्ध स्नान किए ही साहस के साथ सुनसान और भयंकर कंटीली झाड़ियों से गुजर कर ऊंचे टीले पर पहुंच गए, जहां से आवाज सुनाई दे रही थी। जैसे ही उन्होंने झांक कर देखा तो एक भव्य पिंडी दिखाई दी। संत ने उस भव्य पिंडी को स्पर्श करके नमन किया और उसे उठाने लगे। लेकिन पिंडी को वह हिला भी नहीं सके। जिसे देख संत को बड़ा आश्चर्य हुआ और ऊंचे टीले से उतरकर नदी में स्नान करने के लिए आ गए। जहां उन्होंने स्नान करने के बाद अपने कमंडल में जल भरकर पुनः पिंडी के पास पहुंच गए। उन्होंने कमंडल से जल लेकर पिंडी को स्नान कराया और नमन करते हुए अपने गंतव्य पर जा पहुंचे। जिसके पश्चात उन्हीं संत ने पिंडी के ऊपर एक छोटा सा कच्ची मिट्टी का मठ बनवाया। जहां सुबह-शाम घी का दीपक जलाते थे। धीरे-धीरे वहां मान्यता बढ़ती चली गई।

योग माया की अवतार और यादवों की कुलदेवी मानी जाती हैं, मां कैला देवी।
मां कैला देवी योग माया की अवतार मानी जाती हैं। कहा जाता है कि द्वापर युग में मथुरा में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से उत्पन्न कन्या को वहां के अत्याचारी राजा कंस ने अपना काल समझकर अपने हाथ से पृथ्वी पर पटक कर मारने की कोशिश की थी। लेकिन वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश मार्ग में अंतर्ध्यान हो गई थी। वही कन्या कलयुग में योग माया से पिंडी के रूप में भूड़ क्षेत्र में प्रकट हुई। दूसरी तरफ कहा जाता है कि वह भगवान श्री कृष्ण की बहन भी थी। यादव कुल में जन्म लेने के कारण वह यादवों की कुलदेवी भी कही जाती है।
काला ढाक के नाम से प्रसिद्ध था जंगल, चोर डाकुओं का था अड्डा, इस प्रकार पड़ा मां कैला देवी का नाम…..
लगभग चार शतक पूर्व मां कैला देवी से एक किमी दूर दक्षिण दिशा में घना जंगल था। जिसका काफी दूर तक विस्तार था, और वह घना जंगल काला ढाक के नाम से भी प्रसिद्ध था। इस घने जंगल में चोर डाकू दिन दहाड़े राहगीरों से सामान लूटकर राहगीरों की हत्या करके पास में बह रही झील में फेंक दिया करते थे। मां कैला देवी ने योग शक्ति के द्वारा और चोर डाकुओं का संघार किया। काला ढाक क्षेत्र के समीप स्थित होने के कारण ही उस पिंडी का नाम मां कैला देवी पड़ा।
कई किलोमीटर की दूरी के बीच मां कैला देवी पर ही जलता था दीपक।
कहा जाता है कि 14 वीं शताब्दी में गंगा के दक्षिणी पश्चिमी तट पर 12 कोस दूर मां अवंतिका देवी का मठ था। दोनों देवियों के मध्य गंगा की धारा बह रही थी और घना जंगल था। दोनों के बीच कोई आबादी क्षेत्र नहीं था। शाम के समय रात्रि में गंगा के दक्षिणी पश्चिमी तट पर मां अवंतिका देवी तथा उत्तरी पूर्वी तट पर मां कैलादेवी पर ही दीपक जलता था।
झाड़ी में पिंडी के पास दहाड़ता हुआ आता था एक शेर।

लगभग चार दशक पूर्व तक मां कैला देवी की विशालकाय घनी झाड़ी में चैत्र और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि के दिनों में शाम के समय प्रतिदिन दहाड़ता हुआ एक शेर आता था। और सुबह के समय बिना किसी को हानि पहुंचाए चुपचाप चला जाता था। नवरात्रों के बाद में वह शेर किसी को दिखाई नहीं देता था और न ही उसकी दहाड़ सुनाई देती थी। सिंह की दहाड़ सुनकर लोगों में एक आस्था और उत्पन्न हुई की मां कैला देवी साक्षात् देवी के रूप में नवरात्रि के दिनों में शेर पर सवार होकर आतीं हैं।
वर्तमान में कैला देवी मंदिर का महत्व…
मां कैला देवी धाम पर रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्त अपनी इच्छाओं को लेकर पहुंचते हैं और उनकी इच्छाएं पूर्ण भी होती हैं। जहां प्रत्येक महीने के प्रत्येक सोमवार को दिनभर महिलाओं तथा कन्याओं की भीड़ हजारों की संख्या में सुबह से शाम तक लगी रहती है। मंदिर में दूध, दही, ध्वजा नारियल तथा प्रसाद आदि चढ़ाते हैं। मान्यता है कि दुधारू पशु दूध नहीं दे रहा हो तो पशु का दूध या दही मंदिर में चढ़ा देने से वह पर्याप्त मात्रा में दूध देने लगता है। मंदिर पर नित्य सुबह शाम को घंटा तथा नगाड़ा बजाकर सामूहिक स्वर में आरती की जाती है। नित्य प्रातः 4 बजे आरती होती है तथा क्षेत्रवासी घंटे की आवाज सुनकर सुबह अपनी शैया छोड़ देते हैं और अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं।
मां कैला देवी धाम पर घंटे की ध्वनि लगभग 7 किलोमीटर की परिधि में आसानी से सुनी जा सकती है।
मां कैला देवी धाम पर मेले व रामलीला का भी होता है आयोजन।

मां कैला देवी धाम पर कई शतकों से चैत्र और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के दिनों में जहां उत्तर प्रदेश के हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन अपनी इच्छा लेकर आते हैं, वहीं अन्य राज्यों से भी लोग मन्नतें मांगने आते हैं। उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली प्रांत से भी भक्त दर्शन के लिए आते हैं। जहां चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की रामनवमी तथा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष दो बार एक दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है। जहां आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में 12 दिवसीय रात्रि में रामलीला का भी आयोजन होता है। दीपावली के पर्व पर दीपोत्सव तथा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर श्री कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आषाढी, गुरु पूर्णिमा पर विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। समय-समय पर अन्य भक्त मंदिर पर आकर भंडारा करते रहते हैं तथा जागरण भी होते रहते हैं।
मां कैला देवी धाम के अन्य तथ्य…..
प्राचीन समय में मां कैला देवी के निकट दक्षिण दिशा में एक नदी बहती थी, जो लगभग तीन दशक पहले तक एक दलदली झील के नाम से जानी जाती थी। इस झील में भारी जीव जंतु और मनुष्य आदि भी जमीन में नीचे की ओर धंस जाते थे।
लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक इस झील में सांप, बिच्छू, केकड़ा जौंक, सीपी, चौंधा, दादुर तथा कछुआ आदि के विभिन्न प्रजातियां भी पाई जाती थीं। इस झील में कमल, कुमुदिनी, फटेरा तथा टांटर आदि वनस्पतियां प्रमुखता से पाई जाती थीं। कहा जाता है कि जमींदार लोग हाथी पर सवार होकर फटेरा घास लेने के लिए इस झील में आया करते थे। क्योंकि इस घास को हाथी बड़े चाव से खाता है। जहां कई जमींदार लोग और हाथी भी इस दलदली झील में काल के गाल में समा गए।
राजस्थान के मां कैला देवी धाम से नहीं है कोई संबंध।
कैला देवी धाम के महंत ऋषि राज गिरी जी महाराज बताते हैं कि राजस्थान में स्थित मां कैला देवी का संभल के भूड़ क्षेत्र की स्थित मां कैला देवी से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं हैं। मंदिर के निकट लगभग शतक पूर्व प्रसिद्ध संत शीतल दास महाराज की समाधि भी है। जहां संत शीतल दास महाराज जी ने मां कैला देवी के चमत्कारों की प्रसिद्ध सुनकर नित्य दर्शन करने प्रारंभ कर दिए थे और वह मां कैला देवी के टीले से पूर्व दिशा में एक कुटी बनाकर वहीं रहने लगे थे। वर्षा ऋतु में घनघोर वर्षा होने के चलते चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता था। बताया जाता है कि एक बार घनघोर वर्षा हो रही थी। स्नान करने के लिए शीतल दास महाराज ने मां कैला देवी से एक प्रार्थना की थी कि यदि तुममें शक्ति है तो मुझे किसी सवारी का प्रबंध करो, जिससे कि मैं नित्य नियम अनुसार गंगा में स्नान कर सकूं। इस समय मां ने आकाशवाणी हुई कि शीतला तू अपनी कुटिया की झोपड़ी पर बैठ, यहीं से तुझे गंगा में स्नान कराके लाएगी। उसी समय शीतल दास जी कुटिया के छप्पर पर बैठे और कुटिया सहित गंगा में पहुंचकर स्नान करने के बाद सबसे पहले वापस आ गए थे। उसी समय से मां कैला देवी की शक्ति की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलती चली गई। जहां अंत में इस कुटिया में अपनी समाधि लगाकर पृथ्वी में शीतल दास महाराज जी विलीन हो गए और उनका समाधि मंदिर आज भी उनके नाम से प्रसिद्ध है।
मां कैला देवी धाम के प्रसिद्ध संत बाबा रतन गिरी का इतिहास।
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात मां कैला देवी की प्रसिद्धि को सुनकर यहां महंत रतन गिरी जी आए। उन्होंने मां कैला देवी की पिंडी को खुदवाकर देखा तो वह देवी की जड़ को नहीं ढूंढ पाए और थक कर यही कहा कि यह देवी पातालीं है। शक्ति स्वरुपा हैं। उसी दिन से महंत रतन गिरी जी ने देवी के टीले की कंटीली झाड़ियां को काटकर उस स्थान पर मंदिर बनवाया। देवी के दक्षिण दिशा में शिवजी तथा उत्तर दिशा में हनुमान जी के मंदिर की भी स्थापना कराई। संत रतन गिरी जी ने मंदिर की दक्षिण दिशा में एक कुटिया बनाई जिसमें देवी के भक्तों के बैठने की व्यवस्था की गई। झील के उत्तर दिशा में कुएं का निर्माण कराया। जहां आज वह कुआं जलरहित हो चुका है। धीरे-धीरे मां कैला देवी धाम की प्रसिद्धि बढ़ती चली गई और अन्य राज्यों से भी लोग दर्शन के लिए आने लगे। यहां कई दशकों पूर्व से सोमवार के दिन साप्ताहिक बाजार का भी आयोजन होता है, जिसमें लगभग कई दर्जनों गांवों के लोग बाजार का लाभ उठाते हैं और अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएं और सब्जियां खरीदते हैं।
आज संभल के भूड़ इलाके में स्थित मां कैला देवी का स्थान उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में भी एक श्रद्धा का केंद्र बन चुका है।
संभल से वीरेश कुमार की रिपोर्ट…