विश्व पर्यावरण दिवस : पर्यावरण बचाने को शासन स्तर से करोड़ों पौधे, पर कागजों में सिमट रहा संरक्षण।

विश्व पर्यावरण दिवस : पर्यावरण बचाने को शासन स्तर से करोड़ों पौधे, पर कागजों में सिमट रहा संरक्षण।

● आओ बनाएं अपनी धरती को स्वर्ग, कागजों में नहीं, जमीनी स्तर पर लें संकल्प।

● धरती माता करे पुकार….वृक्ष काट, मत करो अत्याचार।

● जनसंख्या वृद्धि ही नहीं, बल्कि हमारी उपभोग वादी संस्कृति भी जिम्मेदार।

प्रवाह ब्यूरो
संभल। हर वर्ष 5 जून का दिन और विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने का अवसर, लोगों में जागरूकता फैलाना और फिर उसके बाद वर्ष भर शांत रहना। यह केवल कागजी संरक्षण को दर्शाता है। जिसके चलते पृथ्वी का अस्तित्व संकट में बढ़ता जा रहा है और तापमान भी आसमान छू रहा है। संभल जनपद में जहां हर वर्ष पृथ्वी को हरा-भरा करने के लिए शासन प्रशासन द्वारा करोड़ों पौधों का रोपण किया जाता है, लेकिन वर्ष भर बाद ही वह पौधे एक बड़े वृक्ष के रूप में आखिर दिखाई क्यों नहीं देते। इसलिए हमें कागजों में खाना पूर्ति करने के बजाय जमीन स्तर पर उतरकर धरती को स्वर्ग बनाने का संकल्प लेना होगा। वृक्षों को काटना, जल प्रदूषण करना, जल को बर्बाद करना, प्लास्टिक उपयोग, कूड़े कचरे की जमीनी स्तर पर अधिक वृद्धि होना आदि पृथ्वी के अस्तित्व पर संकट को दर्शा रहे हैं।
संभल जनपद में जहां प्रशासन द्वारा पिछले वर्ष भी वर्षा ऋतु के दौरान लक्ष्य के अनुसार लाखों पौधे लगाए गए थे, तो वहीं यह प्रक्रिया हर वर्ष अपनाई जाती है। स्वंय अंदाजा लगाया जाए की यदि हर वर्ष लाखों पौधे लगाए जा रहे हैं और यही पौधे वृक्ष बन जाएं तो संभल जनपद क्या पृथ्वी ही हरी भरी दिखाई देगी।


प्रशासन द्वारा लगातार पर्यावरण को बचाने हेतु जहां प्रचार-प्रसार किया जाता है संबंधित अधिकारी भी अपने-अपने संबंधित क्षेत्र में और विभागीय कर्मचारियों को निर्देशित करते हुए पौधारोपण पर ध्यान देते हैं, वहीं यह प्रक्रिया जमीनी स्तर पर पहुंचती है, लेकिन जमीनी स्तर पर जाते-जाते दम तोड़ देती है।
मात्र कागजी कार्यवाही में लाखों पौधे रोपण होना दर्शाया जाता है। पौधारोपण के बाद जिम्मेदारी से दूर भागना, उन्हें ऐसे ही छोड़ देना, आखिर कैसे हम जनपद को हरा भरा बना सकते हैं।
देशभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी बातें, सम्मेलन, सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। लेकिन वास्तविक धरातल पर यह कुछ दिखाई देता नजर नहीं आता।
ऐसे में हम सबको प्रचार-प्रसार के साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी लोगों को जागरूक करने का कार्य करना होगा साथ ही जमीन स्तर पर उतारकर पृथ्वी के अस्तित्व को बचाते हुए जल के दुरुपयोग को रोकना, वृक्षों के अस्तित्व को बचाना तथा प्लास्टिक के प्रयोग से दूर रहना होगा।
जनपद के प्रत्येक सरकारी संस्थान, माध्यमिक, परिषदीय विद्यालयों तथा डिग्री कॉलेज में भी छात्र-छात्राओं द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हुए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है।
मनरेगा के तहत तो कहीं ग्राम प्रधान, शिक्षा विभाग द्वारा अपने क्षेत्र में पौधे लगाने का लक्ष्य दिया जाता है। लेकिन कुछ पौधे लगाने से पहले ही सूख जाते हैं तो कुछ लगाने के बाद उनकी देखभाल नहीं होने के चलते नष्ट हो जाते हैं। और कागजों में खाना पूर्ति कर लाखों पौधे लगाने की रिपोर्ट भेज दी जाती है। इतना ही नहीं तमाम फैक्ट्रियों से निकलता धुआं भी लगातार पर्यावरण को दूषित कर रहा है।

जनसंख्या वृद्धि ही नहीं उपभोग वादी संस्कृति भी जिम्मेदार।

पृथ्वी के अस्तित्व पर संकट खड़ा करने में वास्तव में जनसंख्या वृद्धि ही पर्यावरण असंतुलन के लिए जिम्मेदार नहीं है, बल्कि हमारी उपभोग वादी संस्कृति भी इसकी प्रमुख जिम्मेदार है। औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोत्तरी को आजकल हम विकास मानते जा रहे हैं, साथ ही हैसियत बढ़ा चढ़ा कर दिखाने की कोशिश में जल, जमीन तथा जंगल और ऊर्जा जैसे संस्थानों का अपने निजी इस्तेमाल के लिए उनका शोषण और उन्हें नष्ट करने पर लगे हुए हैं।
लगातार भयंकर गर्मी, भीषण ठंड, यह सब पर्यावरण असंतुलन के कारण हो रहा है और इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं।
जहां पूरा देश ही नहीं बल्कि विश्व के अनेकों देश पर्यावरण को संतुलन करने में लगे हैं, तो वहीं भारत में भी पर्यावरण को बचाने हेतु तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। हर वर्ष प्रत्येक राज्य के प्रत्येक जनपद में लाखों पौधों का रोपण, जल के दुरुपयोग पर रोक लगाने जैसे अभियान चलाकर हम पर्यावरण के अस्तित्व को बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह सब कागजों में ही सिमट कर रह जाना भीषण दयनीय स्थिति को दर्शाता है।
पौधों को लगाने के बाद उनका पालन पोषण नहीं करने, जल की बर्बादी, धरती पर प्लास्टिक उपयोग आदि के उपयोग के चलते हैं पृथ्वी पर संकट बढ़ता जा रहा है।
अधिक वर्षों के कटान के चलते पृथ्वी सुनसान लगने लगी है। जिसके चलते लगातार तापमान बढ़ता जा रहा है। संभल जनपद में भी तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार तक पहुंच जाता है। अधिक पेड़ पौधों के कटने और तापमान बढ़ने के चलते वन्य जीव भी विलुप्तता की ओर बढ़ने लगे हैं। साथ ही पेड़ पौधे नहीं होने के चलते बारिश के दौरान मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट होने के चलते मृदा अपरदन भी निरंतर बढ़ रहा है। जिसके चलते अब हम सबके लिए अत्यावश्यक है कि पर्यावरण संरक्षण व अपनी धरती को स्वर्ग बनाने हेतु कागजों में नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर संकल्प लें।

संभल से वीरेश कुमार की रिपोर्ट…

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